मातॠपितॠशà¥à¤° पà¥à¤°à¤à¥ के बानो ।
बिनहिं विचार करिअ शà¥à¤… जाती ।।
तà¥à¤¨ सब जà¥à¤žà¤¾à¤¤à¤¿ परम हितकारी ।
अजा सिर पर जाय तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤¶à¥ˆ ।
जिनका सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ परोपकार करने का होता हैउनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ चमà¥à¤¹à¥‡ कितना à¤à¥€ कषà¥à¤Ÿ होवे परोपकार जिये बिना रह नहीं सकते । सहज सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ को दà¥à¤¸à¥à¤²à¤¾à¤œ बताया है । साथॠपà¥à¤°à¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤¯ दूसरे कं सनà¥à¤¤à¤¾à¤ª हैं ही तà¥à¤¤à¤¨à¥à¤¤à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤† कसà¥à¤¤à¥‡ है 1 दूसरो के दà¥à¤– से दà¥à¤–ी होना यही उन अखिलातà¥à¤ªà¤¾ परम पà¥à¤°à¥à¤· परमातà¥à¤®à¤¾ की पसà¥à¤¸à¤¾à¤°à¤¾à¤˜à¤¨ हैं
तà¥à¤¤à¤ªà¥à¤¯à¤²à¥à¤²à¥‡ लोक तापेज साधव: पà¥à¤°à¤¾à¤µà¤¶à¥€à¤œà¤œà¤¾: ।
परआरगà¥à¤§à¤²à¤‚ तजि १दà¥à¤«à¤·à¤‰à¤°à¤¾à¤°à¤¿à¤¤à¥à¤°à¤¤à¥à¤µà¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¨à¥¤à¥¤
अठारह पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ का सार इन दो बातों में आ गया है । दूसरे का हित करने के समान कोई दूसरा पà¥à¤£à¥à¤¯ नहीं हैं ओर दूसरो को दà¥à¤– देने के समान कोई पाप नहीं है ।-
अषà¥à¤Ÿà¤¾à¤¦à¤¶ पà¥à¤¦à¤¾à¤ªà¥‹à¤·à¥ वà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¸à¥à¤¯ वचनं हैंयानू।
पसोपकार: पà¥à¤·à¤¯à¤¾à¤¯ पापाय पर पीड़जमà¥à¥¤à¥¤
परहित सरिस धरà¥à¤œà¤œà¤¹à¥€à¤‚ आई।
पर पीडा सटा नहीं अधà¤à¤¾à¤¹à¤ । ।
परोपकार सेना à¤à¥€ सब कà¥à¤°à¥‹à¤‡à¤‚ शà¥à¤°à¥€ हाथ की बात नहीं है । जिनà¥à¤¹ रानà¥à¤¤à¥€ को à¤à¤—वान ने जिस निमितà¥à¤¤ इस धरा पर à¤à¥‡à¤œà¤¾ है यहीं तà¥à¤¤à¤¨à¥à¤¤ परोपकार कर सकते हैं । कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उनका आना ही कंवल परोपकार कं लिठहोता हैं ।
सनà¥à¤¤ विषà¥à¤¯ सरिता गिरि धरनी ।
परहित हैतà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¬à¤¨à¥à¤¹ के करली । ।
पारस मे अरॠसनà¥à¤¤ ने तà¥à¤¤à¤¨à¥à¤¤ अघिक का आजा
वह लोहा से सोजा करे यह कौ आप समाज ।।
संत उदय संतत सà¥à¤–कारी ।
विशà¥à¤µ सà¥à¤–द जिमि हनà¥à¤¦à¥‚तआशे । ।
सनà¥à¤¤à¥‹ का अनà¥à¤¯à¥à¤¦à¤¯ सदा ही सà¥à¤– कर होता है । जैसे चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤®à¤¾ और सूरà¥à¤¯ का उदय विशà¥à¤µ à¤à¤° के लिठसà¥à¤–दायक है । महाराजशà¥à¤°à¥€ ने यह अनà¥à¤·à¥à¤ ान तैलधारावत अखणà¥à¤¡ 72 घनà¥à¤Ÿà¥‡ का रखा जिससे à¤à¤•à¤®à¥ƒ कà¥à¤£à¥à¤¡à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤• शà¥à¤°à¥‹à¤¬à¤¿à¤·à¥à¤£à¥ महायजà¥à¤žà¤¶à¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® नाम संकोरà¥à¤¤à¤¨à¤–ंगीतमय शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤®à¤šà¤°à¤¿à¤¤à¤®à¤¾à¤¨à¤¸à¤¶à¥à¤°à¥€à¤®à¤¦à¤à¤¾à¤—वतादि पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¶à¥à¤µà¥€à¤®à¤¦ à¤à¤—पगीतादà¥à¤—ों सपाशतीशà¥à¤°à¥€à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤à¥€à¤µà¤¿' पà¥à¤°à¤¥à¤® तà¥à¤¤à¤—ं à¤à¥‚लनामायपादि का अखणà¥à¤¡ परि; फालà¥à¤¯à¥à¤¨ चà¥à¤¦à¥€ चौथ शनिवार बि. सं. 2034 से अषà¥à¤Ÿà¤®à¥€ बà¥à¤§à¤µà¤¾à¤° तक चला 1 जिसमें पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¥à¤¤à¤¦à¥à¤°à¤•à¤¾à¤² गांव की पà¥à¤°à¤¦à¤•à¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ राम नाम संकीरà¥à¤¤à¤¨ करते हà¥à¤à¤¯à¤à¥€à¤¯ गकà¥à¤¤à¤¿à¤œà¤²à¤…कà¥à¤·à¤¤à¤¾à¤¦à¤¿ वसà¥à¤¤à¥à¤“ं से गांव का माजंनादि जिया गया । यह अनà¥à¤·à¥à¤ ान साननà¥à¤¦ समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤† । तब से गà¥à¤°à¤¾à¤® में सब पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से सà¥à¤– शानà¥à¤¤à¤¿ à¤à¤µà¤‚ समà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ की वृदà¥à¤§à¤¿ हो रही है । यजà¥à¤ž à¤à¤—वान की कूपा से इस à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• संसार है गà¥à¤°à¤¾à¤®à¤µà¤¾à¤¸à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की सकामनिषà¥à¤•à¤¾à¤® सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की इचà¥à¤›à¤¾à¤à¤ पूरà¥à¤£ हो रही है । इस यजà¥à¤ž महोतà¥à¤¸à¤µ से लोगों को अति लाठà¤à¤¬à¤‚ समृदà¥à¤§à¤¿ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤ˆ कि शà¥à¤°à¥€à¤®à¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤˜ से पà¥à¤¨ यजà¥à¤ž महोतà¥à¤¸à¤µ कराने दो लिठपà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ करने लगे । महाराजशà¥à¤°à¥€ ने इनकी पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करकं पà¥à¤¤ उसी पà¥à¤°à¤œà¥à¤žà¤¾à¤¬ से दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ शà¥à¤°à¥€à¤µà¤¿à¤·à¥à¤£à¥ महायजà¥à¤ž का आयोजन गà¥à¤°à¤¾à¤® धौला ने फालà¥à¤¯à¥à¤¨ बà¥à¤¦à¥€ दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯à¤¾ दिसं. 2048 में हà¥à¤† ।
शà¥à¤°à¥€à¤—ायबी पà¥à¤°à¤¶à¥à¤šà¤°à¤£ à¤à¤µà¤‚ नव कà¥à¤—डातà¥à¤®à¤• महायजà¥à¤ž पà¥à¤°à¤¿à¤µà¥‡à¤£à¥€à¤§à¤¾à¤® में-
गायतà¥à¤°à¥€ को वेदमाता कहा है । यह सà¤à¥€ वेदों कौ जननी है । बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ ने तीनो वेदों में तो साररूप है à¤à¤•-à¤à¤• पाद निकाल कर इस तà¥à¤°à¤¿à¤ªà¤¾à¤¦à¥€ गायतà¥à¤°à¥€ कà¥à¤°à¥‹ बनाया है । दà¥à¤µà¤¿à¤œà¤¾à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठइससे बà¥à¤•à¤° दूसरा मंतà¥à¤° नहीं हैं । इसीसे इसको दà¥à¤µà¤¿à¤œ बनाने बाली दूसरो माता कहा है । जिनके दो जनà¥à¤® हो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ दà¥à¤µà¤¿à¤œ कहते हैं । पà¥à¤°à¤¥à¤® जनà¥à¤® तो माता कं उदर से बाहर होने को माना गया है और दूसरा जनà¥à¤® गायतà¥à¤°à¥€ मंतà¥à¤° की दीकà¥à¤·à¤¾ को कहा है । जनà¥à¤® से मनà¥à¤·à¥à¤¯ शूदà¥à¤° संजà¥à¤žà¤¾ वाले हà¥à¤† करते हैं । किनà¥à¤¤à¥ अपने अपने गिनà¥à¤¨-गिनà¥à¤¨ संसà¥à¤•à¤²à¥à¤¯à¥‹à¤‚ दो कारण उनमे बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¤•à¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯ और वैशà¥à¤¯ बन जातà¥à¤¤à¥‡à¤¹à¥ˆà¤‚ । कहा à¤à¥€ है यथा…जजà¥à¤®à¤œà¤¾à¤œà¤¾à¤µà¤¤à¥‡ शूदà¥à¤°: संसà¥à¤•à¤¾à¤°à¤¾à¤¤à¥ दà¥à¤µà¤¿à¤œ उचà¥à¤¯à¤¤à¥‡ ।
गायतà¥à¤°à¥€ दà¥à¤µà¤¿à¤œà¥‹à¤‚ की माता कं समान रकà¥à¤·à¤¾ करती हैं । जो इसका गायन करता हैजा करता हैउसकी यह नाता दो समान सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° कं दà¥à¤–ों से जाया करली हेइसीसà¥à¤²à¥ˆ इसका नाम गायवी हैं । जायनà¥à¤¤à¤‚ घावते यसà¥à¤®à¤¾à¤¤à¥ आयवो रà¥à¤µà¤‚ तत: सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¾ । गायकी सà¤à¥€ ऋदà¥à¤§à¤¿à¤Ÿà¥à¤µà¥‡à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤°à¥à¤¥à¤¾ को तथा परम पद को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कराने वाली और समसà¥à¤¤ मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ को सआà¤à¥€ हैं । वेदों में मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¤à¤¯à¤¾ गायतà¥à¤°à¥€ सांसीयसà¥à¤Ÿà¤Ÿà¥à¤¯à¤®à¤à¤¤à¥€à¤ªà¤ªà¥€à¤•à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤·à¥à¤Ÿà¥à¤°à¤ª और जगती ये रात छनà¥à¤¦ पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ माने गये है । इनके अतिरिकà¥à¤¤ अति जगतà¥à¤¤à¥€à¤à¤¸à¥à¤•à¥‰à¤°à¥Œ , अषà¥à¤Ÿà¤¾à¤¤à¥à¤¯à¤·à¥à¤Ÿà¥€à¤˜à¥ƒà¤¤à¥à¤¤à¤¿à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤¤à¤¿à¤µà¥ƒà¤¤à¤¿, कृतà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¦à¥à¤µà¤¿à¤†à¤•à¥‚तिबिकृतिसंसà¥à¤•à¥‚ति अतिकांलेउतà¥à¤¦à¤¾à¤²à¥‡ आदि और à¤à¥€ हैं । जिनà¥à¤¤à¥ रात छनà¥à¤¦ पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ हैं । उनमें गायतà¥à¤°à¥€ छनà¥à¤¦ सबसे शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤Ÿ है [ à¤à¤—वानॠशà¥à¤°à¥€à¤•à¥ƒà¤·à¥à¤£ ने à¤à¥€ इसे अपनी बिà¤à¥‚ति माना हैं- णावतà¥à¤°à¥€à¤·à¥à¤ नà¥à¤¦à¤¸à¤¾à¤…हà¤à¥‚ । पता)
बैरो तो तीन पद चौबीस अकà¥à¤·à¤°à¥‹à¤‚ वाली वेदों में गायतà¥à¤°à¥€ चान बाली छनà¥à¤¦ बहà¥à¤¤ हैं किनà¥à¤¤à¥ यह सायितà¥à¤°à¥€ रूपा गायतà¥à¤°à¥€ सà¤à¥€ देयों की जननी है । गायतà¥à¤°à¥€ का उपासक समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ पर विजय पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ वनों सकता है । गायकी समसà¥à¤¤ पापों का नाश करने में समरà¥à¤¥ हैं ' गायतà¥à¤°à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤£ सà¥à¤µà¤°à¥‚पा है । दà¥à¤µà¤¿à¤œà¤¾à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का गायकी ही परम धन हैं ; गायतà¥à¤°à¥€ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ ही दà¥à¤µà¤¿à¤œà¥‹à¤‚ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ हà¥à¤ˆ है । बà¥à¤°à¤¹à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ का गायतà¥à¤°à¥€ मà¥à¤– है इसी से गायतà¥à¤°à¥€ की बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤à¤¾à¤µ से उपासना करनी चाहिठ। इसी बात को बताने वो लिठमहाराजशà¥à¤°à¥€ ने साध शà¥à¤•à¥à¤²à¤¾ पंचमी रविवार दिसं, 2034 को गायतà¥à¤°à¥€ मंतà¥à¤° à¤à¤¬à¤‚ शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® मंतà¥à¤° मà¥à¤°à¤¶à¥à¤šà¤•à¥à¤¯à¤¾
जपनà¥à¤šà¤—à¥à¤°à¤¨à¥à¤·à¥à¤ ान पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ करवाया । इसमें वेदठविदà¥à¤µà¤¾à¤¨ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ जो तà¥à¤°à¤¿à¤•à¤¾à¤² संधà¥à¤¯à¤¾ करते थे । à¤à¥‚मि पर ही शयन संयम में रहते हà¥à¤à¤—ायतà¥à¤°à¥€ मंतà¥à¤° का जप और परम शà¥à¤°à¥€à¤¬à¥ˆà¤·à¥à¤£à¤µ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ संत शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® मंतà¥à¤° का जप करते थे । यह जप दो सो से अघिक बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ और सतà¥à¤¤ कसà¥à¤¤à¥‡ थे } चतà¥à¤¥à¥à¤°à¤¶à¥à¤µà¤¸à¥à¤¯à¤¾ जप के दशांश हवन से नव